भारत की हर मिट्टी में एक कहानी छिपी है कहीं रंगों की, कहीं ख़ुशबू की, तो कहीं आवाज़ की।
उत्तर प्रदेश का अमरोहा उन शहरों में से है जहां लकड़ी की ख़ुशबू और ढोलक की थाप आज भी हर गली में गूंजती है।
यह शहर सिर्फ़ एक भूगोल नहीं, बल्कि हुनर, संगीत और सूफ़ियाना रूह का संगम है।यहां के कारीगरों के हाथों से सिर्फ़ वाद्ययंत्र नहीं बनते, बल्कि ऐसी आवाज़ें जन्म लेती हैं जो दिलों को छू जाती हैं।
अमरोहा — नाम की कहानी और शहर की पहचान
अमरोहा उत्तर प्रदेश के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में, मुरादाबाद के निकट बसा एक छोटा मगर बेहद ख़ास शहर है।
कहा जाता है कि इसका नाम “आम” और “रूहा” (एक मछली की प्रजाति जो यहां बहुतायत से पाई जाती थी) के मेल से पड़ा — “अमरोहा”।यह शहर सदियों से शायरी, सूफ़ी परंपरा और हस्त-कलाओं के लिए जाना जाता रहा है।
मुग़ल दौर में यह इलाक़ा कला और संगीत के प्रेमियों का अड्डा था, और आज भी इसकी गलियों में वो ही रूहानी माहौल महसूस होता है।

हुनर की राजधानी: ढोलक और तबले का घर
अमरोहा को आज “ढोलक और तबला निर्माण का केंद्र” कहा जाए तो ग़लत न होगा।
यहां 300 से अधिक लघु इकाइयां हैं जो ढोलक के निर्माण में लगी हुई हैं, और इनसे करीब 1000 से अधिक कारीगरों को रोज़गार मिलता है। ये वो लोग हैं जो लकड़ी और चमड़े से सुरों की जादुई दुनिया रचते हैं।
ढोलक को अमूमन छड़ी की मदद से बजाया जाता है, और इसकी थाप ने न सिर्फ़ देसी शादियों और कव्वालियों में, बल्कि दुनिया भर की संगीत महफ़िलों में भी अपनी पहचान बनाई है।

ढोलक बनाने की कला
अमरोहा की ढोलक का सबसे अहम हिस्सा है उसकी कुदरती लकड़ी, जो इसके निर्माण की रूह है।
यहां के कारीगर आम (Mango) और शीशम (Sheesham) की लकड़ी के ठोस टुकड़ों को महीनों तक सुखाते हैं,
फिर उन्हें बारीकी से तराशकर खोखले ब्लॉक की शक्ल देते हैं।
ढोलक का बड़ा सिरा चमड़े से बनाया जाता है, जिससे गहरा और भारी “बेस” सुर निकलता है,
जबकि छोटा सिरा बकरी की खाल से तैयार होता है, जो तीखे और साफ़ “ट्रेबल” सुर उत्पन्न करता है।
इसी मेल से अमरोहा की ढोलक में वो अनोखी लय पैदा होती है जो इसे बाकी सब से अलग बनाती है।
यह ढोलक सिर्फ़ एक वाद्ययंत्र नहीं, बल्कि भारत की लोक-संस्कृति की धड़कन है।
एक बुज़ुर्ग कारीगर का मशहूर जुमला आज भी याद किया जाता है —
“हम ढोलक नहीं बनाते बेटे, हम आवाज़ गढ़ते हैं।”
और सच भी यही है — अमरोहा की ढोलक बजती नहीं, बोलती है।

हुनर से कारोबार तक: एक सफल यात्रा
कभी सिर्फ़ शौक़ और परंपरा के लिए बनायी जाने वाली ढोलक आज अमरोहा की आर्थिक रीढ़ बन चुकी है।
यहाँ के सैकड़ों छोटे कारख़ानों में रोज़ाना ढोलक, तबला, पखावज, नक्कारा और अन्य ताल वाद्ययंत्र बनाए जाते हैं।
इनकी गूंज अब सिर्फ़ उत्तर भारत तक सीमित नहीं, बल्कि लंदन, दुबई, जर्मनी और अमेरिका तक पहुँच चुकी है।
अमरोहा के बाज़ारों में चलते हुए आप देखेंगे —
लकड़ी के टुकड़े, औज़ारों की खनक, धूप में सूखता चमड़ा, और सुर की तलाश में झुका हुआ कारीगर —
यही है अमरोहा की रूह, जो हर थाप में ज़िंदा है।
ODOP योजना — जब अमरोहा का हुनर दुनिया तक पहुंचा
साल 2018 में उत्तर प्रदेश सरकार ने “One District One Product (ODOP)” योजना शुरू की।
इसका मक़सद था — “हर ज़िले के अनोखे उत्पाद और पारंपरिक कला को पहचान देना और उसे वैश्विक मंच तक पहुंचाना।”
अमरोहा के हिस्से आई उसकी ढोलक और संगीत वाद्ययंत्रों की विरासत।
सरकार ने यहां के कारीगरों को न सिर्फ़ आधुनिक औज़ार और ट्रेनिंग दी,
बल्कि ब्रांडिंग, पैकेजिंग और ऑनलाइन मार्केटिंग में भी सहयोग प्रदान किया।
अब अमरोहा की ढोलकें केवल हाट-बाज़ारों में नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय ट्रेड फेयर और संगीत प्रदर्शनियों में भी चमक बिखेर रही हैं।
GI Tag — पहचान की मुहर
साल 2023 अमरोहा के कारीगरों के लिए ऐतिहासिक साबित हुआ,
जब “अमरोहा डोलक” को भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication – GI Tag) का दर्जा मिला।
यह सिर्फ़ एक क़ानूनी पहचान नहीं थी, बल्कि सदियों से मिट्टी और मेहनत से जुड़े कारीगरों की मेहनत पर लगी इज़्ज़त की मुहर थी।
अब अगर कोई ढोलक “Amroha Dholak” कहलाएगी — तो वो यहीं की होगी,
यहीं के कारीगरों के पसीने और दुआओं से बनी होगी।
हस्तकला से रेडीमेड वस्त्रों तक
अमरोहा सिर्फ़ ढोलक निर्माण तक सीमित नहीं है। यहां सूत (धागा), कपड़े, हथकरघा, मिट्टी के बर्तन, खांडसारी उद्योग, कालीन निर्माण और लकड़ी की नक्काशी भी प्रसिद्ध हैं।
शहर की पहचान अब रेडीमेड वस्त्र उद्योग से भी जुड़ चुकी है।बच्चों से लेकर बड़ों तक के वस्त्र यहां निर्मित होते हैं,
जिनके लिए कच्चा माल कानपुर, आगरा, कोलकाता और दिल्ली जैसे शहरों से मंगवाया जाता है।
निकटवर्ती नगरों में यहां के उत्पादों की बड़ी मांग है।
यह उद्योग धीरे-धीरे लघु उद्योग से एक संगठित ब्रांड बनने की दिशा में अग्रसर है, और राष्ट्रीय प्रदर्शनियों में भी अमरोहा के उत्पाद गर्व से प्रदर्शित किए जाते हैं।
कच्चे माल की बढ़ती कीमतें, बाज़ार की प्रतिस्पर्धा और तकनीकी सीमाएँ कारीगरों के सामने बड़ी चुनौतियां हैं।
लेकिन अब नई पीढ़ी ई-कॉमर्स, डिजिटल ब्रांडिंग और डिज़ाइनिंग की तरफ़ बढ़ रही है।
“अमरोहा डोलक क्लस्टर” अब एक ब्रांडेड इकाई बनने की दिशा में कदम बढ़ा चुका है।
लोकल से ग्लोबल तक
अगर यही जोश और दिशा बनी रही तो वह दिन दूर नहीं जब अमरोहा को दुनिया “City of Rhythm” के नाम से जानेगी।
यहाँ की हर थाप, हर लकड़ी का टुकड़ा, और हर कारीगर की सांस भारत के संगीत की आत्मा को ज़िंदा रखे हुए है।
“जो थाप अमरोहा की गलियों में गूंजती थी,
अब वो सुर लंदन और न्यूयॉर्क की महफ़िलों में सुनाई देती है।”
अमरोहा की ढोलक सिर्फ़ एक वाद्ययंत्र नहीं, बल्कि भारत की आत्मा, परंपरा और लोक-संस्कृति की थाप है।
यह कहानी है उस मिट्टी की, जहां मेहनत इबादत है, और जहां हर कारीगर अपने हुनर से रूह को आवाज़ देता है।
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