हिंदुस्तान की सरज़मीन पर बसने वाली हर कला अपने भीतर एक कहानी रखती है मेहनत की, ख़ूबसूरती की और विरासत की।
ऐसी ही एक नायाब कला है “मैनपुरी की तारकशी”, जिसमें लकड़ी पर पीतल, तांबा या चांदी के बारीक तारों से नक्क़ाशी की जाती है।
ये सिर्फ़ सजावट नहीं, बल्कि सदीयों पुरानी एक तहज़ीब को बयान करती है।
क्या है तारकशी?
‘तारकशी’ यानी लकड़ी में तारों की जड़ाई।
कारीगर पहले शीशम की लकड़ी पर बारीकी से डिज़ाइन उकेरते हैं, फिर उन नाज़ुक खांचों में पीतल या चांदी के तार हथौड़े की मदद से बिठाते हैं।
एक-एक वार में एक कहानी उभरती है, जो लकड़ी की सतह पर सुनहरी लकीरों की तरह चमकने लगती है। मैनपुरी के कारीगरों की उंगलियों में वो नफ़ासत है कि साधारण लकड़ी को वो अपनी जादुई छुअन से कलाकृति बना देते हैं।
इतिहास: जब तार और लकड़ी ने साथ गाया एक गीत
तारकशी की जड़ें मध्यकालीन हिंदुस्तान तक जाती हैं। कहा जाता है कि मुगल दौर में जब शाही महलों और संदूकों की सजावट में नक्क़ाशी और धातु का चलन बढ़ा, तब यह कला जन्मी। धीरे-धीरे यह हुनर मैनपुरी तक पहुंचा, जहां के शिल्पकारों ने इसे लकड़ी के काम के साथ इस तरह जोड़ा कि यह एक नई पहचान बन गई।
पहले ये काम खड़ाऊं (लकड़ी के जूते) पर होता था, जो संतों और विद्वानों की शान मानी जाती थी।
बाद में यही कला संदूक, फूलदान, नामपट्टिका, ट्रे और दरवाज़ों के पैनल तक फैल गई।
मुगल नक़्क़ाशी की बारीकी और देसी हुनर की सादगी। दोनों का संगम ही है मैनपुरी की तारकशी।
मैनपुरी की पहचान और ओडीओपी योजना
उत्तर प्रदेश के आगरा मंडल में बसा मैनपुरी ज़िला हमेशा से कला, संगीत और शिल्प का केंद्र रहा है।
यहां ज़री और जरदोज़ी का काम भी सदियों से होता आया है।इसी परंपरा में तारकशी ने अपनी अलग पहचान बनाई।
वर्ष 2023 में “मैनपुरी तारकशी” को जीआई टैग (Geographical Indication) मिला।
जिसका मतलब है कि यह कला अब मैनपुरी की असली पहचान बन चुकी है और इसके उत्पाद को वैश्विक स्तर पर मान्यता मिल गई है।
इसके अलावा, उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे अपने ODOP (One District One Product) कार्यक्रम में शामिल किया है। इस योजना के तहत कारीगरों को प्रशिक्षण, प्रदर्शनियों में हिस्सा और विपणन सहयोग मिलता है, ताकि यह पुरानी कला नई पीढ़ियों तक पहुंच सके।
कारीगरों की मेहनत: हाथों की दुआ, दिल की लगन
मैनपुरी के कारीगर आज भी अपने दादाओं-परदादाओं से सीखे औज़ारों से ही काम करते हैं छोटी छेनी, बारीक हथौड़ा और आंखों की सटीकता। हर तार जो लकड़ी में जड़ता है, वो दरअसल मेहनत, सब्र और मोहब्बत का ताना-बाना होता है।
कहा जाता है कि एक अच्छी तारकशी में सिर्फ़ सोना या चांदी नहीं चमकता, बल्कि कारीगर का दिल भी झलकता है।
आज की तारकशी: परंपरा से ट्रेंड तक
अब तारकशी सिर्फ़ पुराने संदूकों या दरवाज़ों तक सीमित नहीं रही। इंटीरियर डिज़ाइन, गिफ्ट आर्टिकल्स और होम डेकोर में भी इसकी मांग बढ़ रही है।
कई युवा डिज़ाइनर इस परंपरा को आधुनिक रूप देकर दुनिया भर में “मैनपुरी हैंडीक्राफ्ट” के नाम से पहचान दिला रहे हैं।
मैनपुरी की तारकशी हिंदुस्तान की उस नफ़ीस रूह का आईना है, जो हर कारीगर के हाथों में बसती है।
लकड़ी पर जड़ते ये सुनहरे तार, दरअसल हमारे इतिहास और हुनर की वो रेखाएं हैं —
जो हमें याद दिलाती हैं कि असली ख़ूबसूरती मशीनों से नहीं, इंसान के हाथों से जन्म लेती है।
जीआई टैग और ओडीओपी योजना ने इस कला को नई ज़िंदगी दी है। अब यह सिर्फ़ एक कारीगरी नहीं, बल्कि मैनपुरी की पहचान और हिंदुस्तान की शान बन चुकी है।
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