दिल्ली का निज़ामुद्दीन इलाका, जो अपनी चहल-पहल और शोर के लिए जाना जाता है, अपनी आग़ोश में एक बे-मिसाल, ख़ामोश और तारीख़ी सरमाये को छुपाए बैठा है – बराखंबा मक़बरा. लोधी रोड पर, मशहूर निज़ामुद्दीन दरगाह से बस चंद क़दमों की दूरी पर, ये मक़बरा अपनी सादगी और शान के साथ खड़ा है. ‘बराखंबा’ का मतलब है ‘बारह खंबे’. ये कोई मामूली इमारत नहीं, बल्कि एक ऐसा सरमाया है जो खुली हवा और रौशनी से सराबोर है.
जहां अक्सर तारीख़ी इमारतें वीरान और बंद होती हैं, वहीं बराखंबा अपने बारह मज़बूत खंबों के सहारे हर सिम्त से आती रौशनी और ताज़ा हवा को अपने अंदर समेटे हुए है. ये मक़बरा एक ख़ामोश बरामदे की तरह लगता है, जहां हर खंबा एक अलग कहानी बयां करता है. अफ़सोस, आज भी हज़ारों लोग रोज़ाना यहां से गुज़रते हैं, मगर इसकी अज़मत से नावाक़िफ़ हैं. इस जगह के बाशिंदे बताते हैं कि उनके बचपन में यहां बच्चों की खिलखिलाहटें गूंजती थीं, जहां लुका-छुपी का खेल खेला जाता था और बड़े मज़े लेकर गुफ़्तगू करते थे. आज ये मक़बरा अपनी पुरानी शान-ओ-शौकत के साथ एक बार फिर से ज़िंदा हो चुका है. सैलानी और तारीख़ के चाहने वाले यहां आकर दिल्ली की उन अनजानी विरासतों से रूबरू होते हैं, जिनकी कहानियां अभी पूरी तरह से बयां नहीं हुईं. मक़बरे के चारों तरफ़ का हरा-भरा पार्क भी एक पुरसुकून पनाहगाह बन चुका है, जहाँ बच्चे खेलते हैं, बुज़ुर्ग बातें करते हैं और परिवार सुकून की शामें गुज़ारते हैं।

बारह खंबों की पहेली
ये मक़बरा किसका है, ये एक राज़ है. तारीख़दानों का मानना है कि ये तुग़लक़ या लोधी दौर में बनाया गया था, और यक़ीनन इसमें कोई बहुत अज़ीम शख़्सियत दफ़्न है. लेकिन इस जगह की असल ख़ूबसूरती इसके बारह खंबे हैं. ये सिर्फ़ वास्तुकला का कमाल नहीं, बल्कि इस्लामी तहज़ीब और हुनर का एक नायाब नमूना हैं. इस्लाम में बारह का अदद बहुत अहमियत रखता है – साल के बारह महीने, बारह इमाम, और दिन-रात के बारह घंटे. मक़बरे में हर सिम्त से तीन-तीन दरवाज़े हैं, जो मिलकर कुल बारह दरवाज़े बनाते हैं, एक ऐसा ख़ूबसूरत तालमेल, मानो ख़ुद कुदरत ने इसे तराशा हो।
खंडहर से शोहरत तक का जज़्बाती सफ़र
एक दौर था जब बराखंबा मक़बरा ख़ामोशी से अपने ज़वाल की दास्तान सुना रहा था. दीवारों पर ग्रैफ़िटी थी, यादें धूमिल हो रही थीं, और ग़ंदगी ने इसकी शान को फीका कर दिया था. लेकिन फिर एक दिन, आगा ख़ान ट्रस्ट फ़ॉर कल्चर, दिल्ली अर्बन हेरिटेज फाउंडेशन और मकामी लोगों की कोशिशों से एक नई कहानी लिखी गई. ये सिर्फ़ पत्थर और दीवारों को साफ़ करने का काम नहीं था, बल्कि अपनी तारीख़ को फिर से ज़िंदा करने का एक जज़्बा था. पुराने हुनरमंदों ने पत्थरों को तराशा, चूने का प्लास्टर लगाया, और हरियाली के साथ इस तारीख़ी जगह को एक नई ज़िंदगी दी. इसमें मकामी कारीगर भी शामिल थे ताकि ये हुनर आने वाली नस्लों तक पहुंच सके. यहाँ के बाशिंदों ने भी दिल खोलकर अपना साथ दिया, अपनी पुरानी तस्वीरें और क़िस्से साझा करके।

बराखंबा: जहां आज और कल दोनों मिलते हैं
आज, बराखंबा मक़बरा सिर्फ़ एक तारीख़ी जगह नहीं, बल्कि इस इलाके के लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बन चुका है. फ़ोटोग्राफ़ी के शौक़ीन यहां आते हैं और बारह खंबों से छनकर आती रौशनी की दिलकश तस्वीरें खींचते हैं, जो सोशल मीडिया पर ख़ूब पसंद की जाती हैं. पार्क में बच्चे खेलते हैं, बुज़ुर्ग चाय की चुस्कियां लेते हुए गुफ़्तगू करते हैं और परिवार सुकून से वक़्त बिताते हैं. मकामी गाइड्स, जिनमें कई ख़ुद निज़ामुद्दीन के रहने वाले हैं, यहां आने वालों को इस जगह की ख़ूबसूरत और रहस्यमयी कहानियां सुनाते हैं।

निज़ामुद्दीन दरगाह के क़रीब होने की वजह से, कई लोग यहाँ दुआ और इबादत के लिए भी ठहरते हैं. बराखंबा का खुलापन, उसकी सादगी और ख़ामोशी इस जगह को मोहब्बत से भर देती है. उर्स के मौके पर जब दरगाह में अक़ीदतमंदों का सैलाब उमड़ता है, तो बराखंबा एक पुरसुकून रूहानी मंज़िल बन जाता है।
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