बीते कुछ सालों से, साल के आख़िर में एक डेटा आता है कि फ़ूड एग्रीगेटर ऐप पर कौनसी डिश सबसे ज़्यादा ऑर्डर की गई. बिला शुब्हा, बिरयानी इज़ द विनर.
हांडी-हांडी झाँककर और रोटी-बोटी देखकर मकान और दस्तरख़ान की पहचान करने वाले इस इस मुग़ल प्रेमकाल में, बिरयानी ने ज़ेहन-ओ-ज़बान पर एक अलग ज़ायक़ा छोड़ा है. बीते कुछ अरसे में बिरयानी ने बहुतों का फ़्लेवर बढ़ाया तो बहुतों का तेवर. बिरयानी की तारीख़ का मुझे नहीं पता. संजीव कपूर से लेकर मेरे फ़ेवरिट ब्रो रणवीर ब्रार की ज़ुबानी, बिरयानी की बेशुमार कहानियाँ सुनने को मिल जाएंगी.
दिल्ली 6 वालों की मानें, तो मुग़लिया ख़ानसामों की तरबियत उन्होंने ही की है. दिल्ली सल्तनत के सुल्तान, जामा मस्जिद की सीढ़ियों से उतरते तो मटिया महल का ही रुख़ करते थे और अपनी बेग़म के लिए बिरयानी पैक करवाते थे. शायद यही वजह रही हो कि जामा मस्जिद से बाहर निकलते वक़्त दाहिनी तरफ़ एक विशालकाय द्वार खोला गया, जिसकी सीढ़ियों का रुख़ सीधे अल-जवाहर के चौराहे पर जा मिलता है.
अवध वालों ने तो बिरयानी पर डबल एहसान किया. लखनऊ भी और कलकत्ता भी. अवध में न सियासत बची थी न ही रियासत, अलबत्ता अवध वालों ने दक्कन से बहुत पहले ही, लखनऊ में एक नया निज़ाम क़ायम किया. ये निज़ाम था रियासत-ए-बिरयानी. अमीनाबाद को बिरयानी की राजधानी बनाया. अवध के पूरब यानी आज के पश्चिम बंगाल में भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था. अंग्रेजों ने बंगाल को क़रीब-क़रीब कंगाल बना दिया था.
कलकत्ते का जो ज़िक्र किया तूने हम-नशीं,
इक तीर मेरे सीने में मारा कि हाय हाय!
(मिर्ज़ा ग़ालिब)

शायद यही वजह थी कि अवध के नवाब वाजिद अली शाह ने कलकत्ते की सरज़मीं पर जब क़दम रखा तो ख़ालिस गोश्त की जगह आलू वाली बिरयानी मुयस्सर हुई. ऐसा लगता है कि ज़करिया स्ट्रीट, कलकत्ता के खानसामों ने, ख़स्ताहाल होते शाही ख़ज़ाने की लाज छुपाने के लिए ही अवधी बिरयानी में आलू की मिलवटख़ोरी को ईजाद करके शाही लज्ज़त को इज़्ज़त बख़्शी. अगर मैं शायर होता तो दौर-ए-हाज़िर पर एक शेर यूँ अर्ज़ करता.
लखनऊ की नफ़ासत, कलकत्ते की रवानी,
दोनों में बसी है, बिरयानी की कहानी

हैदराबाद के तसव्वुरात की परछाइयों में एक बार, जब मैं शहर के एक आदिम बिरयानीख़ोर से मिला तो उन्होंने बताया कि जब अवध और कलकत्ते के लोग बिरयानी डकार के डकार मार रहे थे, तब हैदराबाद में बिरयानी की देग चढ़ी थी. उपनिवेशक बनकर हमारा कल्याण करने आए विदेशी मेहमान, भारतीय मसालों के बहुत बड़े कद्रदान थे. वो इतने मेहरबान थे कि इन मसालों को दुनियाभर के बाज़ारों में बेचकर भाग्यवान बन चुके थे. शायद मसालों की इस तस्करी को ही रोकने के लिए, टीपू के वंशजों ने हैदराबादी बिरयानी में मसालों के मिक़दार को प्रचुरता से बढ़ावा दिया.

बिरयानी को लेकर उनकी, इनकी, आपकी, हम सबकी अपनी-अपनी कहानियां हैं. बहरहाल, बिरयानी की मेरी कहानी एक जद्दोजेहद भरी दास्ताँ है. मेरे लिए बिरयानी का मतलब है, दो दिनों पहले क़ायम किया हुआ एक माहौल, जहाँ आरज़ूएँ हैं, मिन्नतें हैं, अर्ज़ियाँ हैं, गुज़ारिशें हैं. जब ये सब मान ली जाती हैं, तो घर पर बिरयानी बनाने वालों की फ़रमाइशों की एक लंबी फ़ेहरिस्त है. भरी सर्दी में पुदीने की फ़रमाइश हो या लोकल बाज़ार में आम तौर पर नहीं मिलने वाला सूखा हुआ आलू बुख़ारा हो. मीठे अतर की हो कोई कहानी या फिर हो रंग ज़ाफ़रानी, मेरे लिए तो इसी जद्दोजहद का नाम है बिरयानी. राह चलते अल्मुनियम की देग से 240 रुपए किलो के भाव हरी-मिर्च और नींबू तुलवाने वाले लोग आख़िर क्या जानेंगे बिरयानी का मोल.
ये भी पढ़ें: भारत में बढ़ता मोटापा बच्चों के लिए खतरे की घंटी!
आप हमें Facebook, Instagram, Twitter पर फ़ॉलो कर सकते हैं और हमारा YouTube चैनल भी सबस्क्राइब कर सकते हैं।
This article is written by Aadil Raza Khan, an award-winning journalist and a passionate enthusiast of food and travel.