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23-12-2025 Vol 19

मेरठ का बिगुल: उत्तर प्रदेश की धरोहर को मिला वैश्विक सम्मान

By Muskan Khan

उत्तर प्रदेश… एक ऐसी धरती, जहां धर्म की महक है, अध्यात्म की गूंज है, संस्कृति की विरासत है और इतिहास का वैभव कण-कण में बसता है। यही वजह है कि भारत के 28 राज्यों में यूपी अपनी अलग पहचान रखता है—एक ऐसी पहचान, जो इसके ज़िलों, कस्बों, गांवों, कारीगरों और सदियों पुरानी परंपराओं से मिलकर बनती है।

इसी विरासत को और मज़बूत करते हुए हाल ही में उत्तर प्रदेश के एक अनोखे पारंपरिक वाद्ययंत्र—मेरठ के बिगुल—को Geographical Indication (GI Tag) मिला है। यह न सिर्फ़ मेरठ की शिल्पकला, बल्कि यूपी की संस्कृति का भी गर्व बढ़ाने वाला सम्मान है।

उत्तर प्रदेश: विविधता और विरासत का संगम

उत्तर प्रदेश भारत का सबसे अधिक आबादी वाला और प्रशासनिक दृष्टि से सबसे बड़ा राज्य है।

  • कुल क्षेत्रफल: 2,40,928 वर्ग किलोमीटर
  • 2025 की अनुमानित आबादी: 24 करोड़ से अधिक
  • कुल ज़िले: 75 (जल्द ही 76वां जिला ‘कल्याण सिंह नगर’ प्रस्तावित)
  • प्रशासनिक ढांचा: 18 मंडल, 351 तहसीलें, 17 नगर निगम, 75 नगर परिषद्, 28 विकास प्राधिकरण

इतने विशाल प्रदेश में हर ज़िले की अपनी अलग पहचान है—कहीं ब्रज का रस है, कहीं अवध की तहज़ीब, कहीं काशी का अध्यात्म तो कहीं बुंदेलखंड की वीरगाथाएं। इसी विविधता में मेरठ अपनी ख़ास जगह बनाता है।

मेरठ के बिगुल की गूंज पहुंची ग्लोबल मंच तक

भारत सरकार की GI Registry ने हाल ही में मेरठ के बिगुल को GI Tag प्रदान किया है। इसका मतलब यह है कि अब दुनिया का कोई भी देश यदि इस तरह का बिगुल बनाएगा, तो उसकी मूल पहचान “मेरठ” नहीं मानी जाएगी।

मेरठ का बिगुल = मेरठ की कारीगरी (कानूनी रूप से सुरक्षित)

बिगुल क्या है?

बिगुल एक पारंपरिक पीतल या तांबे से बना वाद्ययंत्र है, जिसकी तेज़ और गूंजती ध्वनि सेना, पुलिस, NCC, स्कूल परेड और विभिन्न आयोजनों में उपयोग की जाती है।
यह सिर्फ़ एक musical instrument नहीं—यह अनुशासन, साहस और तत्परता का प्रतीक है।

कहानी 1830 में शुरू हुई थी…

मेरठ में बिगुल निर्माण का इतिहास बेहद पुराना है।

  • वर्ष 1830 में ब्रिटिश शासन ने अपनी सेना के लिए बिगुल बनाने का आदेश मेरठ के कारीगरों को दिया।
  • तब से आज तक, लगभग दो सौ वर्षों से यह परंपरा जीवित है।
  • शहर की ऐतिहासिक जली कोठी में आज भी दर्जनों की संख्या में कारीगर बिगुल निर्माण करते हैं।

मेरठ न सिर्फ़ बिगुल, बल्कि

  • ट्रंपेट,
  • ड्रम,
  • बैंडबाजा,
  • फैनफेयर हॉर्न
    जैसे लगभग 10 से अधिक वाद्ययंत्रों का प्रमुख केंद्र है।

इन्हें देशभर में भेजा जाता है, और भारतीय वाद्ययंत्रों की विदेशों में निर्यात लिस्ट में मेरठ का नाम हमेशा ऊपर रहता है।

मेरठ—बिगुल ही नहीं, खेल और कैंची का भी हब

मेरठ का ज़िक्र हो और खेल से जुड़े सामान की बात न हो, यह संभव नहीं।

  • मेरठ देश का सबसे बड़ा स्पोर्ट्स गुड्स हब है।
  • क्रिकेट बैट, गेंद, ग्लव्स, फुटबॉल, हॉकी स्टिक… दुनिया के कई शीर्ष खिलाड़ी मेरठ में बने उपकरणों का इस्तेमाल करते हैं।

इसके अलावा,

  • कैंची उद्योग यहां मुगल काल से स्थापित है।
    मेरठ की बनाई कैंची आज भी अपनी धार और मज़बूती के लिए मशहूर है।

GI Tag की अगली कतार में—रेवड़ी और बैंडबाजा

मेरठ के कारीगर सिर्फ एक नहीं, कई पारंपरिक उत्पादों की तरह-तरह की कलाएँ जीवित रखे हुए हैं।

  • मेरठ की रेवड़ी (खासकर सर्दियों की प्रसिद्ध गुड़-पॉपकॉर्न की रेवड़ी)
  • मेरठ का बैंडबाजा उद्योग

इन दोनों के लिए भी GI Tag के आवेदन जमा हो चुके हैं और प्रक्रिया चल रही है।

यदि ये भी पंजीकृत होते हैं, तो मेरठ की सांस्कृतिक पहचान और भी मज़बूत हो जाएगी।


मेरठ का बिगुल अब केवल एक वाद्ययंत्र नहीं रहा।
यह एक धरोहर है—जिसने

  • 1830 के उपनिवेश काल,
  • स्वतंत्रता संग्राम,
  • भारतीय सेना की परंपराओं
    और
  • आज के आधुनिक भारत
    तक के सफर को देखा है।

GI Tag मिलने के बाद अब यह बिगुल और भी अधिक गरिमा और गर्व के साथ दुनिया भर में बजेगा—यह बताते हुए कि कला, शिल्प और मेहनत का ‘घंटी’ सिर्फ शोर नहीं, पहचान होती है… और मेरठ की यह पहचान अब वैश्विक है।

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