पीएम नरेंद्र मोदी ने जहान-ए-ख़ुसरो 2025 के सिल्वर जुबली समारोह का उद्घाटन किया। दिल्ली के सुंदर नर्सरी में सूफ़ियाना रंग और मौसिक़ी की महफ़िल सजी। इस मुक़द्दस मौके़ पर उन्होंने देशवासियों को रमज़ान की मुबारकबाद पेश की और हिंदुस्तान की सूफ़ियाना रवायत की तारीफ़ में कसीदे पढ़े।

जहान-ए-ख़ुसरो की खुशबू हिंदुस्तान की मिट्टी से आती है
पीएम मोदी ने अपने ख़िताब में कहा, “जहान-ए-ख़ुसरो सिर्फ़ एक आयोजन नहीं, बल्कि हिंदुस्तान की तहज़ीब का आइना है। वो हिंदुस्तान, जिसकी हज़रत अमीर ख़ुसरो ने जन्नत से तशबीह दी थी। यहां की मिट्टी की ख़ासियत ही यही है कि उसने हर तहज़ीब को अपने रंग में रंग दिया। जब सूफियाना सिलसिला हिंदुस्तान आया, तो इसे भी ऐसा लगा मानो ये इसकी अपनी ही सरज़मीं हो।

पीएम ने रमज़ान की मुबारकबाद दी
इस मुक़द्दस मौक़े पर पीएम मोदी ने रमज़ान की आमद का ज़िक्र करते हुए कहा, “रमज़ान का बाबरकत महीना शुरू होने वाला है। मैं तमाम देशवासियों को रमज़ान की मुबारकबाद देता हूँ। ऐसे मौके़ न सिर्फ़ हमारी सांस्कृतिक विरासत को मज़बूत करते हैं, बल्कि दिलों को सुकून भी देते हैं। जहान-ए-ख़ुसरो का ये सफर 25 बरस मुकम्मल कर चुका है, और इस दौरान इसने लोगों के दिलों में अपनी ख़ास जगह बना ली है।
सूफी परंपरा की रोशन मिसाल
पीएम मोदी ने कहा कि हिंदुस्तान में सूफ़ी रवायत ने एक अलग पहचान बनाई है। सूफी बुज़ुर्गों ने इबादत को सिर्फ़ मस्जिदों और खानकाहों तक महदूद नहीं रखा, बल्कि इसे मोहब्बत और इंसानियत के फ़लसफ़े से जोड़ दिया। उन्होंने फरमाया, “ये वो लोग थे जिन्होंने कुरआन के हर्फ़ पढ़े, तो वेदों के सुर भी सुने। उनकी अज़ान में भक्ति के गीतों की मिठास घुली। कोई भी मुल्क अपने संगीत और अपनी कला के जरिये ही अपनी तहज़ीब की तर्जुमानी करता है।

पीएम मोदी ने हज़रत अमीर ख़ुसरो के हिंदुस्तान की तारीफ़ में कहे अल्फ़ाज़ को दोहराते हुए कहा कि उन्होंने भारत को उस दौर के तमाम बड़े मुल्कों से अफ़ज़ल बताया था। खुसरो ने संस्कृत ज़बान को दुनिया की बेहतरीन जबानों में शुमार किया और हिंदुस्तान के मनीषियों को सबसे बड़ा आलिम माना। उन्होंने कहा, “हज़रत अमीर ख़ुसरो जिस बसंत के दिवाने थे, वो बसंत आज जहान-ए-ख़ुसरो की फ़िज़ाओं में घुला हुआ है।
संगीत, सूफियत और तहज़ीब का मेला
जहान-ए-ख़ुसरो के इस रौशन जलसे में सूफी संगीत का जादू सर चढ़कर बोला। महफ़िल में तशरीफ़ लाए लोगों ने न सिर्फ़ सूफ़ियाना कलामों का लुत्फ़ उठाया, बल्कि तह बाज़ार में हिंदुस्तान की रिवायती दस्तकारी और साज़-ओ-सामान को भी देखा।
जहान-ए-ख़ुसरो सिर्फ एक संगीत समारोह नहीं, बल्कि मोहब्बत, अमन और सूफियाना फन का एक अजीम कारवां है, जो आने वाली नस्लों के लिए तहज़ीब की रोशनी छोड़ता रहेगा।